निगमित या कॉर्पोरेट शासन का अर्थ (Corporate Governance Definition )–
निगमित या कॉर्पोरेट शासन का अर्थ व्यवसाय को व्यवसायिकता के सुस्थापित नियमों एवं मानदंडों के अनुसार संचालित करना तथा व्यवसाय में उत्तरदायित्व, पारदर्शिता, भागीदारी तथा नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहन देना है।
यह अवधारणा निजी एवं लोक उद्यमों दोनों से संबंधित है
लोक प्रशासन का यह विचार 1929 ईस्वी के समय न्यूयॉर्क शेयर बाजार के धराशायी होने के दौरान आया।
National Foundation for Corporate Governance (NFCG) –
इसका गठन निगमीय मामलों के मंत्रालय द्वारा भारतीय उद्योग परिसंघ, इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टेड अकाउंट ऑफ इंडिया (ICAI), इंस्टिट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरी ऑफ इंडिया के सहयोग से एक गैर लाभकारी संस्था के रूप में किया गया है।
NFCG का त्रिस्तरीय ढांचा है। जिसमें शासी परिषद, ट्रस्टी बोर्ड और निदेशालय सम्मिलित है।
यह संस्था व्यावसायिक नेतृत्व को संवेदनशील बनाने तथा व्यवसाय, नीति-निर्माताओं विनियामकों तथा गैर सरकारी संगठनों के बीच विचार विमर्श के लिए एक मंच प्रदान करती है।
एनएफसीजी द्वारा कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांतों के विकास हेतु एक कार्य योजना भी तैयार की गई है।
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निगमित शासन की विशेषताएं (Features of Corporate Governance)
- यह व्यवसाय को इस तरीके से संचालित करने वाली अवधारणा है जिसमें शेयरधारकों, उपभोक्ताओं, कार्मिकों समाज एवं सरकार को अधिकतम लाभ हो।
- इसका उद्देश्य लोकतांत्रिक पद्धतियों को व्यवसाय के क्षेत्र में लागू करना है।
- कॉर्पोरेट क्षेत्र में होने वाले विभिन्न घोटालों व अनियमितताओं को रोकना भी इसका उद्देश्य है।
- यह विचारधारा निगमित क्षेत्र में उत्तरदायित्व, पारदर्शिता, निष्पक्षता और सहभागिता के तत्वों को शामिल किए जाने का प्रावधान करती है।
- इसमें व्यवसाय के सुस्थापित मापदंडों के साथ साथ मानवीय मूल्यों एवं नैतिक कर्तव्यों का भी समावेश किया जाता है।
- इस में शेयर धारकों को प्रबंधन में भागीदारी एवं उनके साथ समान व्यवहार के सिद्धांत का परिपालन किया जाता है। वस्तुतः यह भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों से मेल खाती अवधारणा है।
- यह अवधारणा व्यवसायी वर्ग को धन अर्जन के साथ-साथ उस धन का समाज के हित में उपयोग करने का दायित्व सौंपती है।
- इसमें पर्यावरण संरक्षण, महिला एवं बाल अधिकार, समावेशी विकास, समाजवाद के सिद्धांतों को मान्यता दी जाती है।
निगमित शासन की आवश्यकता –
- वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण के दौर में जहां सार्वजनिक क्षेत्र में सुधार हो रहे हैं वही निजी क्षेत्र में भी सामाजिक दृष्टि से प्रासंगिक सुधार होने चाहिए।
- बड़े व्यावसायिक घोटालों में शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी इसकी महती आवश्यकता प्रतीत हुई।
- प्रबंधकीय सिद्धांतों एवं व्यवहार में परिवर्तन ने भी एक जवाबदेह व्यावसायिक अभिशासन की स्थापना को प्रोत्साहित किया।
- व्यवसाय को वित्त उपलब्ध करवाने वाले विभिन्न संस्थानों ने समय-समय पर मानक लेखांकन पद्धति एवं अंकेक्षण की मांग की।
- नए बदलते दौर में निजी व्यवसाय यह महसूस करने लगे कि वर्तमान में व्यावसायिक क्षेत्र के उत्थान के लिए सामाजिक प्रासंगिकता भी आवश्यक है।
- वैश्वीकरण एवं प्रौद्योगिकीकरण के दौर में एक देश में होने वाले अच्छे व्यावसायिक परिवर्तनों को दूसरे देश भी स्वीकार करने लगे जिससे निगमित शासन की अवधारणा बलवती हुई।
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