भारत में नव लोक प्रबंधन (Public Management), e-Governance, Corporate Governance, समस्टि शासन, सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणाओं को केंद्र से स्थानीय स्तर तक की व्यवस्थाओं में आवश्यक परिवर्तन करने के संदर्भ में लागू किया गया है।
भारत में लोक प्रबंधन के नवीन आयाम –
- लोक कल्याणकारी व्यय को घटाया गया है।
- लोक उद्यमों का विनिवेश, निजीकरण एवं उनमें समझौता ज्ञापन, नवरत्न, महारत्न जैसी श्रेणियां प्रदान करने की प्रविधियां अपनाई गई है।
- विकेंद्रीकरण एवं निजी निकायों के द्वारा ठेका प्रथा से कार्य करवाना।
- राइट टू इनफार्मेशन जैसे प्रावधानों से जनता की भागीदारी एवं पारदर्शिता को प्रोत्साहन देना।
- ई-गवर्नेंस को लागू करने वाली गतिविधियों को रेलवे, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में लागू करना।
- सरकारी संगठनों का निगमीकरण करना।
- PPP, BOT आदि तकनीकों के माध्यम से सरकारी कार्यों को करवाना।
- नागरिक अधिकार पत्रों की घोषणा करना।
- प्रशासनिक सुधार के लिए आयोगों का गठन करना एवं प्रशासन में सुधार के लिए उनकी अनुशंसाओं को लागू करना।
- सुशासन से संबंधित अवधारणाओं को लागू करना।
- कार्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व को लागू करने हेतु नियम एवं विनियम बनाना।
- समावेशी विकास, धारणीय विकास की अवधारणाओं को लागू करना।
- स्मार्ट सिटी व स्मार्ट विलेज की अवधारणा को लागू किया गया है।
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परिवर्तन का प्रबंधन-
परिवर्तन वर्तमान व्यवस्था या कार्य प्रणालियों में रूपांतर होने को प्रदर्शित करता है। परिवर्तन का प्रबंधन एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसमें संगठन के आंतरिक एवं बाह्य परिवेश में परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है तथा संगठन के ढांचों, कार्य तथा कर्मचारियों के व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन का व्यवस्थित नियोजित प्रयास किया जाता है। परिवर्तन का प्रबंधन करने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों की वजह से होती है-
1. बाह्य वातावरण के कारण-
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियां – सामाजिक रीति रिवाज मूल्यों में परिवर्तन होने पर।
- राजनीतिक तथा वैधानिक परिस्थितियां- सरकार की औद्योगिक नीति, वित्तीय एवं मौद्रिक नीति, आयात- निर्यात नीति में परिवर्तन होने पर।
- जनता – लोगों की रुचि, आवश्यकता, आदतों, आयु आदि में परिवर्तन होने पर।
- आर्थिक परिस्थितियां- मुद्रास्फीति, मुद्रा अवमूल्यन, ऋण सुविधाएं, कुल बचत, अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में अर्थव्यवस्था में परिवर्तन होने पर।
- बढती प्रतियोगिता- तकनीकी एवं अन्य कारणों से अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संदर्भ में बाजार क्षेत्र में परिवर्तित होती प्रतियोगिता।
- संगठनों में होने वाला परिवर्तन – -बाह्य संगठनों के आकार व उनके स्वामित्व में परिवर्तन होने पर।
- भौतिक परिवर्तन- जल, वायु की मात्रा तथा मिट्टी आदि भौतिक तत्वों की मात्रा एवं गुणवत्ता में परिवर्तन होने पर।
- उदारीकरण एवं भूमंडलीकरण से होने वाला परिवर्तन।
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2. आंतरिक कारण –
- कर्मचारियों तथा प्रबंधकों में परिवर्तन- शिक्षित और जागरूक होना, महिला कर्मचारियों संख्या में परिवर्तन। जैसे राजस्थान हाडी रानी महिला पुलिस बटालियन।
- संस्था में नीति एवं संरचना में परिवर्तन।
- संगठन के कार्यों में परिवर्तन।
- सामरिक नियोजन एवं आंतरिक विकास- संगठन द्वारा किए जाने वाले सामरिक नियोजन तथा आंतरिक क्षमता बढ़ाने से होने वाला परिवर्तन।
- किए जाने वाले कार्यों की प्रकृति में परिवर्तन – कार्यों में बढ़ते मशीनी हस्तक्षेप के कारण होने वाला परिवर्तन।
- प्रबंधन में भागीदारी- कार्मिकों को प्रबंधन में अधिक भागीदारी देने से होने वाला परिवर्तन।
- वेतन प्रारूप- कर्मचारियों को वेतन, संगठन में लाभ में हिस्सेदारी, अंश हिस्सेदारी आदि के तरीकों से दिए जाने के कारण होने वाला परिवर्तन।
3. तकनीकी कारण-
- नव मशीनरी का विकास
- संपर्क साधनों का विकास
- कच्चे माल का परिष्करण
- ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन
नव लोक प्रबंधन की अवधारणा का विकासशील देशों के संबंध में
नव लोक प्रबंधन की अवधारणा विकासशील देशों में पूरी तरह से लागू नहीं की जा रही है, क्योंकि वहां बाजार में सेवा प्रदाता की एजेंसी के रूप में कुछ कमियां देखने को मिलती है तथा स्थानीय स्तरों पर दक्ष एवं कुशल तकनीकों, सुयोग्य प्रबंधकों, वैज्ञानिक मानदंडों आदि की कमी देखने को मिलती है। जिससे नव लोक प्रबंधन की अवधारणा पूर्णतया साकार नहीं हो पाती है।
प्रबंधन की नई तकनीकों एवं गतिविधियों को यदि देशों में लागू करना है तो वैज्ञानिक मानदंडों का विकास श्रम एवं प्रबंधन में प्रशिक्षण कार्यक्रम, नागरिक सशक्तिकरण के लिए योजनाएं, e-Governance का सुदृढ़ और इनमें दक्ष कार्मिकों की पूर्ति आदतों की सुनिश्चित के जाए।
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