आहारनाल में भोजन के जटिल एवं अघुलनशील अवयव (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा) एन्जाइम्स के द्वारा घुलनशील एवं सरल अवयवों (ग्लूकोज़, अमीनों, अम्ल, वसीय अम्ल) में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को भोजन का पाचन कहते हैं। इसमें यान्त्रिक एवं रासायनिक दोनों ही प्रकार की क्रियाएँ होती हैं। भोजन का अवशोषण छोटी आन्त्र में होता है। भोज्य पदार्थों के पचे हुए अंशों के जीवद्रव्य में विलय की क्रिया स्वांगीकरण कहलाती है।
मनुष्य में पाचन “मुख” से प्रारंभ होकर “गुदा” तक होता है इसके निम्नलिखित भाग हैं-‘
- मुख
- ग्रसनी
- आमाशय
- छोटी आँत
- बड़ी आँत
- मलाशय
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1 मुख(Mouth)
आहार नाल का अग्रभाग मुख से प्रारंभ होकर मुखगुहा में खुलता है यह एक कटोरे नुमा अंग है इसके ऊपर कठोर तथा नीचे कोमल तालु पाए जाते हैं मुख गुहा में ही चारों ओर गति कर सकने वाली पेशी निर्मित जिव्हा पाई जाती है जिव्हा मुख गुहा के पृष्ठभाग में आधार तल से फ्रेनुलम लिंगुआल या जिव्हा फ्रेनुलम के द्वारा जुड़ी होती है मुख के ऊपर वह नीचे के भाग में 11 जबड़े में 16 -16 दांत पाए जाते हैं सभी दांत जबड़े में पाए जाने वाले एक सांचे में स्थित होते हैं इस सांचे को मसूदा कहा जाता है मसूड़ों कथा दांतो की इस स्थिति को गर्त दंती कहा जाता है
- इसमें लार ग्रंथि(Saliva Gland) से लार निकलकर भोजन से मिलकर भोजन को अम्लीय को प्रदान करती हैं।
- लार में पाए जाने वाले एंजाइम इमाइलेज तथा टायलिन मंड (स्टार्च) को आंशिक रूप से पचाने का कार्य करते हैं।
- मुख में गर्म भोजन का स्वाद बढ़ जाता है क्योंकि जीभ का पृष्ठ क्षेत्र बढ़ जाता हैं।
- मुख में पाए जाने वाला एक एंजाइम लाइसोजाइम बैक्टीरिया को मारने का कार्य करता है।
- भोजन मुख से आगे के पाचन तंत्र में क्रमाकुंचन गति से बढ़ता है।
उदाहरण- सर्पों में पाई जाने वाली विष ग्रंथियां मनुष्य के किस ग्रंथि की रूपांतरण होती हैं।
(अ) पाचक ग्रंथियों की
(ब) लार ग्रंथियों की
(स) आंतीय ग्रंथियों की
(द) थायराइड ग्रंथि की
दांत चार प्रकार के होते हैं
1 कृंतक
2 रदनक
3 अग्र
4 चवर्णक
एक जबड़े में क्रमशः दांतो का क्रम 4-2-4-6 है।
2 ग्रसनी(Oesophagous)
इस भाग में कोई पाचन क्रिया नहीं होती है यह सिर्फ मुख और आमाशय को जोड़ने का कार्य करती है।
3 आमाशय(Stomach)
आमाशय में भोजन का पाचन अम्लीय माध्यम होता है। मनुष्य के आमाशय में जठर ग्रंथियां ( गैस्ट्रिक ग्लैंड) पाई जाती हैं जो जठर रस का स्त्रावण करती है। जल,सरल शर्करा,एल्कोहल आदि का अवशोषण करता है।आमाशय में निम्न एंजाइम पाए जाते हैं जिनके कार्य निम्नलिखित है—
- पेप्सिन एंजाइम – इसके द्वारा प्रोटीन का पाचन होता है।
- रेनिन एंजाइम –इसके द्वारा दूध में पायी जाने वाली केसीन प्रोटीन का पाचन होता हैं।
- लाइपेज एंजाइम :– इसके द्वारा वसा का पाचन होता है।
- एमाइलेज एंजाइम :- इसके द्वारा मंड का पाचन होता है।
HCl भोजन के पाचन के माध्यम को अम्लीय बनाता है। भोजन के साथ आए हानिकारक जीवाणुओं तथा कंकड़ जैसे कणों को गला देता है।
4 छोटी आंत(Small Intestine)
पोषक तत्वों के अवशोषण का प्रमुख अंग,यहाँ पर पाचन की क्रिया पूरी होती है और पाचन के अंतिम उत्पाद,जैसे:-ग्लूकोज़, फ्रक्टोज़, वसीय अम्ल,ग्लिसरॉल और अमीनो अम्ल का म्यूकोसा द्वारा रुधिर प्रवाह और लसिका में अवशोषण होता है।
- छोटी आँत में भोजन का पाचन क्षारीय माध्यम होता है, क्योंकि आंतीय रस का PH मान 8•08 से 8•3 होता है।
- छोटी आंत को आहार नाल का सबसे लंबा भाग माना जाता है। जिसकी लंबाई 6 से 7 मीटर होती हैं।
- कार्य तथा संरचना के आधार पर छोटी आंत के तीन भाग होते हैं। जिन्हें क्रमशः ग्रहणी , मध्यांत्र तथा शेषान्त्र कहा जाता है।
- छोटी आंत की ग्रहणी में भोजन के पाचन में पित्त रस और अग्नाशयिक रस सहायक होते हैं।
- पित्त रस का निर्माण यकृत में और अग्नाशयिक रस का निर्माण अग्नाशय में होता हैं।
5 बड़ी आँत (Large Intestine)
- इस भाग में बचे भोजन का तथा शेष 90% जल का अवशोषण होता हैं।
- बडी आँत की लंबाई 1 से 1•5 मीटर होती है, जहां पर भोजन का पाचन नहीं होता है।
- कार्य तथा संरचना के आधार पर बड़ी आप के 3 भाग होते हैं जिन्हें क्रमशः अंधनाल , कोलोन तथा मलाशय कहा जाता है।
- जल,कुछ खनिजों और ओषधियों का अवशोषण होता है
6 बड़ी आंत(Rectum)
- इस भाग में अवशिष्ट भोजन का संग्रहण होता है।यहीं से समय समय पर बाहर निष्क्रमण होता हैं।
- नोट:- सेलुलोज (एक प्रकार का जटिल कार्बोहाइड्रेट) का पाचन हमारे शरीर में नहीं होता है, सेलुलोज का पाचन सीकम (Ceacum) में होता है। सीकम शाकाहारी जंतुओं में पाया जाता है। मनुष्य में सीकम निष्क्रिय अंग के रूप बचा है।
- अंधनाल(Ceacum)से जुड़ी नलिका की संरचना को कृत्रिम रूप परिशेषिका कहा जाता है। जो मनुष्य में अवशेषी संरचना होती है अर्थात् वर्तमान समय में मनुष्य के शरीर में इस सरंचना का कोई कार्य नहीं है।
- शाकाहारी जंतुओं में कृमि(वर्म) रूप परिशेषिका(Vermiform Appendix) सेलुलोज के पाचन में सहायता करती है। मांसाहारी जंतुओं में यह संरचना नहीं पाई जाती हैं।।
- कृमि(वर्म) रूप परिशेषिका के बढ़ जाने पर अपेंडिसाइटिस नामक रोग हो जाता है।
यकृत्त(Liver)
यकृत मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी बाह्य स्रावी ग्रंथि होती हैं। भार के आधार पर यकृत को शरीर का सबसे बड़ा अंग माना जाता है। लंबाई के आधार पर शरीर का सबसे बड़ा अंग त्वचा को माना जाता है। मनुष्य में एक यकृत पाया जाता है,जो दो पिंडो में विभाजित होता है जिसमें दाएं पिंड में नीचे की ओर एक थैली नुमा संरचना पाई जाती है।जिसे पित्ताशय(Gall Bladder) कहते हैं।
पित्ताशय में पित्त रस का संचयन होता है। जबकि पित्तरस का निर्माण यकृत में होता है। कुछ स्तनधारी प्राणियों में पिताशय नहीं पाया जाता हैं।जैसे घोड़ा, जेबरा, गधा,खच्चर तथा चूहा।_
यकृत में बना पित्तरस क्षारीय प्रकृति का होता है। जिसका PH मान लगभग 7•7 होता है। पित्त रस में एंजाइम नहीं पाया जाता। फिर भी इसके द्वारा वसा का पाचन होता है। जिसे एमल्शीकरण कहा जाता है। एमल्शीकरण की क्रिया का संबंधी यकृत से होता है।
अगन्याशय (Pancreas)
अगन्याशय मनुष्य के शरीर का ऐसा अंग है,जो मिश्रित ग्रंथि की तरह कार्य करता है।अगन्याशय में बाह्य स्रावी भाग के रूप में अगन्याशिक नालिका पाई जाती हैं। जबकि अंतः स्रावी भाग के रूप में लैंगरहैंस की द्वीपकाऐं पाई जाती हैं। लैंगरहैन्स की द्वीपकाओं का निर्माण तीन प्रकार की कोशिकाओं से होता हैं।
- अल्फा:- अल्फा कोशिकाओं से ग्लूकेगाॅन हार्मोन का स्त्राव होता है। यह हार्मोन रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा को बढ़ाता है।
- बीटा :- यह कोशिकाएं इंसुलिन हार्मोन का स्त्रवण करती है। जो रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करता है।
इन्सुलिन हार्मोन के अल्प स्त्रावण से रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे “मधुमेह रोग” (सुगर डायबिटीज मिलेटीस) कहा जाता है। अग्नाशय में अग्नाशयिक रस का निर्माण होता है। जिसे पूर्ण पाचक रस के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसमें सभी प्रकार के पोषक तत्वों को पूर्णतया पचाने वाले एंजाइम पाए जाते हैं। जैसे:- प्रोटीन के पाचन के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम पाया जाता है।
छोटी आंत में पाए जाने वाली आंतीय ग्रंथियां जिन्हें ब्रुनर्स ग्रंथियां कहा जाता है। जिनमें आंतीय रस का निर्माण होता है। जिसमें सभी प्रकार के पोषक तत्वों को पूर्णतः पचाने वाले एंजाइम पाए जाते हैं।
पाचक एन्जाइम ( Digestive enzyme )
आहारनाल के अन्दर कार्बनिक उत्प्रेरकों द्वारा भोजन के पोषक पदार्थों को जल अपघटन की दरों में वृद्धि हो जाती है। इन्हें पाचक एन्जाइम कहते हैं। इन्हें हाइड्रोलेसेज कहते हैं। इनके चार प्रमुख वर्ग हैं-
- कार्बोहाइड्रेट पाचक एन्जाइम- ऐमाइलेजेज, माल्टेज, सुक्रेज तथा लैक्टेज।
- प्रोटीन पाचक एन्जाइम- एण्डोपेप्टिडेजेज- (इरेप्सिन, ट्रिप्सिन, काइमो–ट्रिप्सिन), एक्सोपेप्टिडेजेज।
- वसा पाचक एन्जाइम
- न्यूक्लिएजेज
कार्बोहाइड्रेट को पचाने वाले
- सुक्रेज एंजाइम- इसके द्वारा सुक्रोज शर्करा का पाचन होता है।
- लैक्टेज एंजाइम-इसके द्वारा दूध में पाई जाने वाली लैक्टोज शर्करा का पाचन किया जाता है।
- माल्टेज एंजाइम- इसके द्वारा बीजों में पाई जाने वाली माल्टोज शर्करा का पाचन होता है।
प्रोटीन पाचक एंजाइम
- इरेप्सीन एंजाइम- इसके द्वारा प्रोटीन का पूर्ण पाचन होता है अर्थात यह एंजाइम प्रोटीन को अमीनो अम्ल में तोड़ देता हैं।
वसा पाचक एंजाइम
- लाइपेज एंजाइम- इसके द्वारा वसा का पाचन वसीय अम्ल तथा ग्लिसराल में होता है।
पाचक एन्जाइम्स के कार्य
लार का एन्जाइम- टायलिन—मण्ड को शर्करा में बदलता है।
आमाशय का जठर रस- इसका पेप्सिन एन्जाइम प्रोटीन को पेप्टोन्स में तथा रेनिन दूध की केसीन को पैराकेसीन में बदलता है।
ग्रहणी में पित्तरस- वसा का इमल्सीकरण करता है।
अग्न्याशयिक रस- टरिप्सिन एन्जाइम प्रोटीन को पेप्टोन व पॉलीपेप्टाइड में बदलता है।
कार्बोक्सिडेज एन्जाइम – पॉलीपेप्टाइड को अमीनो अम्ल में बदलता ह
एमाइलेज एन्जाइम – मण्ड को माल्टोज शर्करा व ग्लूकोज़ में बदलता है।
लाइपेज- वसा को वसीय अम्ल व ग्लिसरोल में बदलता है।
न्यूक्लिएजेज- न्यूक्लिक अम्लों (DNA व RNA) को न्यूक्लिओटाइड्स में बदलता है।
आन्त्रीय रस- इरेप्सिन पॉलीपेप्टाइड्स को अमीनों अम्ल तथा ग्लूकोज में बदलता है।
माल्टेज – माल्टोज को ग्लूकोज शर्करा में,
लैक्टेज- लेक्टोज को ग्लूकोज शर्करा में,
सुक्रेज- सुक्रोज को ग्लूकोज शर्करा में बदलता है,
लाइपेज- शेष वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरोल में बदलता है,
न्यूक्लिएजेज- न्यूक्लिक अम्ल व न्यूक्लिओटाइड्स को न्यूक्लिओसाइड्स व शर्कराओं में बदलता है।
पाचन तंत्र के कुछ विकार:-
- डायरिया:-➡ आंत की अप सामान्य गति की बारम्बारता और मल का अत्यधिक पतला हो जाना।
- पीलिया:-➡ यकृत प्रभावित,त्वचा व आँख पित्त वर्णकों के जमाव के कारण पीले रंग के दिखाई देते है।
- वमन:-➡ आमाशय में संग्रहित प्रदार्थों का मुख से बाहर निकलना।
- कब्ज:-➡ मलाशय में मल का रुक जाना तथा आँत की गतिशीलता अनियमित हो जाती है।
- अपेंडिसाइटिस:- अपेंडिक्स में प्रदाह।
Digestive System important Question and Quiz
Q 1 सजीवों को पोषण ग्रहण करने की आवश्यकता क्यों होती है
उत्तर–सजीवों में निरंतर संपन्न होने वाली जैविक क्रियाओं के निर्वाह हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है यह ऊर्जा इन्हीं भोज्य पदार्थों के माध्यम से पाचन क्रिया एवं अवशोषण क्रिया के उपरांत जैविक ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा के रूप में उपलब्ध कराई जाती है!
Q 2 सजीवों में भोजन संचय करने वाले पोली सैकेराइड के नाम दीजिए ?
उत्तर– पादपों में भोजन संचय करने वाले polysaccharide –स्टार्स |
जंतुओं में भोजन संचय करने वाले पोली सैकेराइड– ग्लाइकोजन |
Q 3 पाचन तंत्र में जल अवशोषण के प्रमुख स्थान कौन से हैं ?
उत्तर– जल का अवशोषण का प्रारंभ आमाशय से हो जाता है किंतु आंत्र द्वारा अधिकतम मात्रा में जल अवशोषित किया जाता है यह मुख्यता परासरण क्रिया द्वारा होता है!
Q 4- पाचन तंत्र में कोलेस्ट्रोल की क्या भूमिका होती है ?
उत्तर–कोलेस्ट्रोल पित्त का ही एक महत्वपूर्ण घटक है इसकी उत्पत्ति व्यर्थ पदार्थों को माना जाता है जो शरीर से यकृत द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है कोलेस्ट्रोल का अपचित उत्पाद कोपरोसटोल (Coprosterol) मल में पाया जाता है यही कोलेस्ट्रॉल पित्ताशय में पथरी निर्माण का कारण बनता है!
Q 5-मानव पाचन तंत्र में पित्त लवण और वर्ण कौन कौन से होते हैं ?
उत्तर–पित्त लवण Sodium taurocholate, sodium glycocholate,
पाचन में पित्त वर्णक के रूप में — बिलीरुबिन bilirubin , Biliverdin प्रमुख होते हैं!
प्रश्न -6 पाचन किसे कहते हैं ?
उत्तर-भोजन के जटिल पोषक पदार्थों को सरल पोषक पदार्थों में बदलने की क्रिया पाचन कहलाती है|
प्रश्न 7- पाचन के कितने भाग हैं नाम लिखिए ?
उत्तर- पाचन क्रिया के पांच भाग है जोकि निम्न है
●अंतर्ग्रहण
●पाचन
●अवशोषण
●स्वांगीकरण
●बहीषकरण
प्रश्न 3 दांतों के कितने प्रकार हैं और इनकी संख्या तथा प्रकार बताइए
उत्तर- मुख के दोनों जबड़ो में चार प्रकार के दांत पाए जाते है यह संख्या में 32 होती हैं
- दांत का प्रकार—-कार्य
- कृन्तक(I)—भोजन को कुतरना
- रदनक(C)—चिरना व फाड़ना
- अग्रचवर्णक(P)–भोजन कुचलना व पीसना
- चवर्णक(M)–कुचलना व पीसना
मानव दांतो को सूत्र में ब व्यक्त किया जा सकता है जिसे दांत सूत्र कहते है- I2/2,C1/1,Pm2/2,M3/3=(8/8)×2=32
प्रश्न 4-मानव मुख में को कोनसे एंजाइम पाए जाते है
उत्तर-जीभ के निचले भाग में लार ग्रंथिया पायी जाती है लार में 2 एंजाइम पाए जाते है।
1.टायलिन
2.लाइसोजाइम
प्रश्न 5-टायलिन व लाइसोजाइम के उपयोग बताइये
उत्तर- टायलिन-यह पोलीसैकेराइड कार्बोहायड्रेट को सरल पदार्थो में बदलता है।यह लार में पाया जाता ह। लाइसोजाइम-यह बैक्टरिया को नष्ट करने का काम करता है यह लार,आंसू,पसीने में पाया जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
जठर रस में HCL तथा 3 एंजाइम (रेनिन+पेप्सिन+मयूसिन)मिलते है
रेनिन -कैसीन प्रोटीन को सरल पदार्थो में बदल देता है
पेप्सीन-अन्य प्रोटीनों को सरल पदार्थो में बदलता है
मयूसीन-अमाशय के hcl के प्रभाव को समाप्त कर देता है
hcl की अधिकता से ही एसिडिटी तथा mouth अल्सर (मुँह के छाले) की समस्या पैदा होती है।
छोटी आंत के तीन भाग होते है ड्योडनम,जेजुनम,इलियम
यकृत से आया हुआ बिलीरुबिन भोजन में डयोडनम में आकर मिलता है
यकृत के नीचे प्लीहा को शरीर का ब्लड बैंक/ RBC का कब्रगाह कहा जाता है
RBC की मृतु के बाद हीमोग्लोबिन बिलरुबिन और बिलरूडीन में बदल जाता है।
बविलिरूबिन एक पीला पदार्थ हैजो पित्त रस के साथ भोजन में पहुंच जाता है और पीलेपन के लक्षण को दिखाता है।
ईसे पीलिया/जॉन्डिस/पाण्डुरोग कहते है जो कि आगे चलकर हेपेटाइटिस में बदल जाता है।
?बीलीरुडीन शरीर मे पहुंचकर किडनी की कोशियो द्वारा यूरोक्रोम में बदल दिया जाता है इस यूरोक्रोम के कारण की मोटर का रंग पीला होता है।
?डयोडनम में ही अग्न्याशय से आया हुआ अग्न्याशयी रस भोजन में मिल जाता है जिसमे 3 एंजाइम होते है।ट्रिप्सिन,एमाईलीन,लाइपेज
ड्योदनुम से स्त्रावित आंत्र रस में 5 एंजाइम पायेजाते है
- सुकरेज़ (सुक्रोज को ग्लूकोज़ में बदलने हेतु)
- मालटीज़ (माल्टोज को ग्लूकोज में बदलने हेतु)
- लेकटीज़ (लैक्टोज़ को ग्लूकोज़ में बदलने हेतु)
- ट्रिप्सिन (प्रोटीन पर क्रिया कर सरल पदार्थो में)
- लाइपेज़ (वसा पर क्रिया कर सरल पदार्थो में)
डयोडनम में पचा हुआ भोजन जेजुनम होता हुआ इलियम में पहुंचकर अवशोषित हो जाता है।
बदी आंत के 3 भाग है सिकम ,कोलोन, रेक्टम
बडी आंत व छोटी आंत के जोड़ वाले भाग को सिकम कहते है यहा पर वर्मीफॉर्म अपेंडिक्स होती है(भोजन के यह फसने से अपेंडिक्स रोग हो जाता है)
कोलोन में ई कोलाई नामक बैक्टीरिया पाए जाते ह यह सहजीवी बैक्टिरिया हैजो बिना पसीज पदार्थो को अपघटन की प्रक्रिया द्वारा सरल पदार्थो में बदल देते है और कोलोन में जल का अवशोषण हो जाता है।बेकार पदार्थ रेक्टम में इकठा होता रहता है व उत्सर्जित कर दिया जाता है।
- शरीर की क्रियाओं पर नियंत्रण करने वाला तंत्र – तंत्रिका तंत्र
- प्रतिवर्ती क्रियाओं पर नियंत्रण करता है- मेरुरज्जु
- अन्तःस्त्रावी तंत्र में उत्पन्न होता है- हारमोन
- पीयूष ग्रंथि कहाँ पाई जाती है? – मस्तिष्क में
- थायराक्सिन नामक हारमोन उत्पन्न करती है-थायराइड ग्रंथि
- थायराक्सिन नामक हारमोन की कमी सेगलगण्ड नामक रोग हो जाता है ।
- एड्रिनल ग्रंथि वृक्क में पाई जाती है ।
- इंसुलिन हारमोन अग्नाशय ग्रंथि उत्पन्न करती है ।
- इंसुलिन हारमोन की कमी से रक्त में ग्लुकोज कीमात्रा बढ़ जाती है ।
- पीयूष ग्रंथि मास्टर ग्रंथि है ।
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No of Question- 49
[wp_quiz id=”1107″]
Specially thanks to Quiz Makers ( With Regards )
रमेश डामोर सिरोही, दिनेश मीना झालरा टोंक, P K Nagauri, JETHARAM LOHIYA, राजपाल हनुमान गढ़, प्रियंका गर्ग, हरिराम देवासी जयपुर, प्रीति मिश्रा अहमदाबाद, प्रकाश कुमावत