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( ब्रिटिश भारत के प्रमुख वायसराय )
लार्ड कैनिंग (1858 ई. – 1862 ई.)
कैनिंग 1856 से 1858 तक भारत का गवर्नर जनरल था। लार्ड कैनिंग भारत का अंतिम गवर्नर जनरल भी था। 1857 की क्रान्ति के दौरान भारत के गवर्नर जनरल रहे। कैनिंग 1858 में भारत के पहले वायसराय बने। कैनिंग के समय की महत्वपूर्ण घटना 1857 की क्रान्ति थी।
कैनिंग के समय में इंडियन हाइकोर्ट एक्ट पारित हुआ, जिसके तहत कलकत्ता बम्बई और मद्रास में एक-एक उच्च न्यायालय की स्थापना हुई।कैनिंग के समय में ही लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर 1857 में कलकत्ता, मद्रास, और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई।
1861 का भारतीय परिषद् अधिनियम कैनिंग के समय में ही पारित हुआ इसके समय में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 ई. में स्वतन्त्र रूप से लागु हुआ।
लार्ड मेयो (1869 ई. – 1872 ई.)
लार्ड मेयो के कार्यकाल में भारतीय सांख्यिकीय बोर्ड का गठन किया गया। भारत में अंग्रेजो के समय में प्रथम जनगणना 1872 ई. में लार्ड मेयो के समय में हुई थी। मेयो के काल में 1872 ई. में अजमेर, राजस्थान में मेयो कॉलेज की स्थापना की गई।
1872 ई. में कृषि विभाग की स्थापना भी मेयो के काल में हुई थी।
लार्ड लिटन (1876 ई. – 1880 ई.)
लॉर्ड लिटन प्रथम 1876 ई. में भारत के वायसराय बने। इसके समय में बम्बई, मद्रास, हैदराबाद, पंजाब एंव मध्य भारत में भयानक अकाल पड़ा। इसने रिचर्ड स्टेची की अध्यक्षता में अकाल आयोग की स्थापना की। लार्ड लिटन के कार्यकाल में प्रथम दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया और एक राज-अधिनियम पारित करके 1877 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को ‘कैसर-ए-हिन्द’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
लिटन ने अलीगढ में एक मुस्लिम एंग्लो प्राच्य महाविद्यालय की स्थापना की। इसके कार्यकाल में 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित किया गया, जिसके कारण कई स्थानीय भाषाओं के समाचार पत्र आदि को ‘विद्रोहात्मक सामग्री’ के प्रकाशन का आरोप लगाकर बंद कर दिया गया।
इसके समय में शस्त्र एक्ट (आर्म्स एक्ट) 1878 पारित हुआ, जिसमे भारतीयों को शस्त्र रखने और बेचने से रोका गया। इसने सिविल सेवा परीक्षाओं में प्रवेश की अधिकतम आयु सीमा घटाकर 19 वर्ष कर दी।
लार्ड रिपन (1880 ई. – 1884 ई.)
रिपन ने समाचारपत्रों की स्वतंत्रता को बहाल करते हुए 1882 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया, जिस कारण इसे प्रेस का मुक्तिदाता कहा जाता है। रिपन ने सिवल सेवा में प्रवेश की अधिकतम आयु को 19 से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दिया।
रिपन के काल में भारत में 1881 ई. में सर्वप्रथम नियमित जनगणना करवाई गई। 1881 ई. में प्रथम कारखाना अधिनियम रिपन के द्वारा लाया गया। रिपन के समय में 1882 में शिक्षा के क्षेत्र में सर विलियम हंटर की अध्यक्षता में हंटर आयोग का गठन हुआ और 1882 में स्थानीय शासन प्रणाली की शुरुआत हुई।
1883 में इल्बर्ट बिल विवाद, रिपन के समय में ही पारित हुआ, जिसमे भारतियों को भी यूरोपीय कोर्ट में जज बनने का अधिकार दे दिया गया था। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने रिपन को भारत का उद्धारक की संज्ञा दी।
लार्ड कर्जन (1899 – 1905 ई.)
लार्ड कर्जन के कार्यकाल में सर एण्ड्रयू फ़्रेजर की अध्यक्षता में एक पुलिस आयोग का गठन किया गया। कर्जन के समय में उत्तरी पश्चिमी सीमावर्ती प्रान्त की स्थापना भी की गयी। शैक्षिक सुधारों के अन्तर्गत कर्ज़न ने 1902 ई. में सर टॉमस रैले की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया।
कर्जन के समय में 1904 में प्राचीन स्मारक संरक्षण अधियम पारित हुआ, जिसके द्वारा भारत में पहली बार ऐतिहासिक इमारतों की सुरक्षा एवं मरम्मत की ओर ध्यान देने के लिए भारतीय पुरातत्त्व विभाग की स्थापना हुई।
कर्ज़न ने 1901 ई. में सर कॉलिन स्कॉट मॉनक्रीफ की अध्यक्षता में एक सिंचाई आयोग का भी गठन किया। 1899-1990 ई. में पड़े अकाल व सूखे की स्थिति के विश्लेषण के लिए सर एण्टनी मैकडॉनल की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग का गठन किया गया।
लॉर्ड कर्ज़न के समय में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य था – 1905 ई. में बंगाल का विभाजन, जिसके बाद भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का सूत्रपात हो गया। इसके समय बिहार (तत्कालीन बंगाल) में पुसा में कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई। 1905 ई. में लॉर्ड कर्ज़न ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
लार्ड मिन्टों द्वितीय (1905 – 1910 ई.)
लार्ड मिंटो के कार्यकाल में 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। इसके कार्यकाल में 1907 में कांग्रेस का सूरत का अधिवेशन हुआ जिसमे कांग्रेस का विभाजन हो गया, जिसका 1916 के लखनऊ अधिवेशन में पुनः एकीकरण हुआ।
लॉर्ड मिण्टो के समय में मॉर्ले-मिंटो सुधार अधिनियम 1909 ई. पारित हुआ, जिसमे सरकार में भारतीय प्रतिनिधित्व में मामूली बढ़ोत्तरी हुई और हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मण्डल बनाया गया।
लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय (1910 – 1916 ई.)
लार्ड हार्डिंग के समय सन 1911 में जॉर्ज पंचम के आगमन पर दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया, साथ ही बंगाल विभाजन को रद्द कर दिया गया। 1911 में ही बंगाल से अलग करके बिहार और उड़ीसा नाम से नए राज्यों का निर्माण हुआ।
हार्डिंग के कार्यकाल में भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। हार्डिंग के समय में ही सन 1914 में प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ, जिसके लिए वह भारत का समर्थन पाने में सफल रहा। हार्डिंग के समय में 1913 में फ़िरोजशाह मेहता ने बाम्बे क्रानिकल एवं गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप का प्रकाशन किया।
हार्डिंग के कार्यकाल में तिलक ने अप्रैल 1915 में और एनी बेसेंट ने सितम्बर 1915 में होमरूल लीग की स्थापना की। 1916 ई. में पंडित महामना मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू की स्थापना की और लॉर्ड हार्डिंग को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलपति भी नियुक्त किया गया।
लार्ड चेम्सफोर्ड (1916 – 1921 ई.)
इसके कार्यकाल में तिलक और एनी बेसेंट ने अपने होमरूल लीग के आन्दोलन की शुरुआत की। 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग में एक समझौता हुआ जिसे लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है, जिसके अंतर्गत मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहां पर उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व देने की वयवस्था की गयी।
इसके समय में ही भारत में शौकत अली, मुहम्मद अली और मौलाना अबुल कलम आजाद द्वारा खिलाफत आन्दोलन की भी शुरुआत की गयी, जिसे बाद में गाँधी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन का भी समर्थन भी मिला। 1920 में ही मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज (सैयद अहमद खान द्वारा 1875 में स्थापित) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना।
चेम्सफोर्ड के कार्यकाल में, सर सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त करके रौलेट एक्ट मार्च 1919 में पारित किया गया, जिससे मजिस्ट्रेटों को यह अधिकार मिल गया कि वह किसी भी संदेहास्पद स्थिति वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करके उस पर मुकदमा चला सकता था।
चेम्सफोर्ड के समय में ही 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ। इसके समय में भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. व मॉण्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार लाया गया।
1916 ई. में पूना में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना तथा 1917 ई. में शिक्षा पर सैडलर आयोग की नियुक्ति लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड के समय में ही की गई।
लार्ड रीडिंग (1921 – 1926 ई.)
लॉर्ड रीडिंग के समय में गाँधी जी का भारतीय राजनीति में पूर्णरूप से प्रवेश हो चुका था। लार्ड रीडिंग के कार्यकाल में 1919 का रौलेट एक्ट वापस ले लिया गया।
रीडिंग के समय में ही केरल में 1921 में मोपला विद्रोह (Moplah Rebellion) हुआ, जो खिलाफत आन्दोलन का ही एक रूप था, जिसके नेता वरीयनकुन्नाथ कुंजअहमद हाजी, सीथी कोया थंगल और अली मुस्लियर थे। लार्ड रीडिंग के ही कार्यकाल में 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा की घटना हुई, जिसकी वजह से गाँधी जी ने अपना असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया।
लार्ड रीडिंग के समय में 1921 में प्रिन्स ऑफ़ वेल्स (Prince of Wales) का भारत आगमन भी हुआ। जिसका कांग्रेस द्वारा बहिष्कार किया गया और पुरे भारत में भूख हड़ताल का भी आयोजन किया गया।
लार्ड रीडिंग के कार्यकाल एम. एन. रॉय (Manabendra Nath Roy) द्वारा दिसम्बर 1925 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party of India, CPI) का भी गठन किया गया। 1922 में चितरंजन दास, नरसिंह चिंतामन केलकर और मोतीलाल नेहरू ने मिलकर स्वराज पार्टी (Congress-Khilafat Swarajaya Party) का गठन किया।
लार्ड रीडिंग के कार्यकाल में दिल्ली और नागपुर विश्वविद्यालयों की भी स्थापना हुई।
लार्ड इरविन (1926 – 1931 ई.)
इरविन के कार्यकाल के दौरान गाँधी जी ने 12 मार्च, 1930 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की। इरविन के कार्यकाल में 1919 ई. के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट की समीक्षा करने के लिए, 1927 में साइमन कमीशन नियुक्त किया गया, जिसके सभी सदस्य अंग्रेज होने के कारण इसका विरोध किया गया।
लार्ड इरविन के कार्यकाल में मोतीलाल नेहरु ने नेहरु रिपोर्ट पेश की, जिसमे भारत को अधिशासी राज्य का दर्जा देने की बात कही गयी।
कांग्रेस ने 1930 ई. में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन शुरू किया और अपने कुछ अनुयायियों के साथ दांडी यात्रा करके नमक कानून तोडा। इरविन के समय में लंदन में ब्रिटिश सरकार और गाँधी जी के बीच द्वितीय गोलमेज सम्मलेन हुआ।
मार्च 1931 में गाँधी और इरविन के बीच गाँधी-इरविन समझौता हुआ, जिसके बाद गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लिया।
लार्ड इरविन के कार्यकाल में ही 1929 में प्रसिद्ध लाहौर षड्यंत्र एवं स्वतंत्रता सेनानी जतिनदास की 64 दिन की भूख हड़ताल के बाद जेल में मृत्यु हो गयी थी।
लॉर्ड विलिंगडन (1931 – 1936 ई.)
लॉर्ड विलिंगडन के कार्यकाल में 1931 में. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन और 1932 में तृतीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लन्दन में हुआ। जिसमे भारत का प्रतिनिधित्व कांग्रेस की तरफ से गाँधी जी ने किया था। विलिंगडन के समय में 1932 में देहरादून में भारतीय सेना अकादमी (Indian Military Academy, IMA) की स्थापना की गयी। 1934 में गाँधी जी ने दोबारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।
1935 में गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट पारित किया गया, एवं 1935 में ही बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। विलिंगडन के समय में ही भारतीय किसान सभा की भी स्थापना की गयी। महात्मा गाँधी एवं अम्बेडकर के बीच 24 सितम्बर, 1932 ई. को पूना समझौता हुआ।
लार्ड लिनलिथगो (1938-1943 ई.)
1939 में सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस छोड़कर फॉरवर्ड ब्लाक नाम की अलग पार्टी का गठन कर लिया, क्योंकि कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में सुभाष चन्द्र बोस के दोबारा अध्यक्ष चुने जाने का गाँधी जी ने विरोध किया था।
22 दिसम्बर, 1939 में भारतीयों को द्वितीय विश्व युद्ध में सम्मिलित किये जाने के विरोध में प्रांतीय कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने इस्तीफा दे दिया, इस दिन को मुस्लिम लीग ने मुक्ति दिवस के रूप में मनाया। लार्ड लिनलिथगो के समय में ही पहली बार मुस्लिम लीग द्वारा 1940 में पाकिस्तान की मांग की गयी। 1942 ई. में क्रिप्स मिशन (cripps mission) भारत आया।
1940 में कांग्रेस ने व्यक्तिगत असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया। लार्ड लिनलिथगो के कार्यकाल में गाँधी जी ने करो या मरो का नारा देते हुए भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत की।
लार्ड वेवेल (1943 – 1947 ई.)
1945 में लार्ड वेवेल ने शिमला में एक समझौते का आयोजन किया, जिसे शिमला समझौता या वेवेल प्लान के नाम से जाना गया। वेवेल के समय में 1946 में नौसेना का विद्रोह हुआ था। 1946 में अंतरिम सरकार का गठन किया गया।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी, 1947 को भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा कर दी।
लार्ड माउंटबेटेन (1947 – 1948 ई.)
लॉर्ड माउंटबेटन भारत का अंतिम वायसराय था। लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून, 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा की। 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तुत किया गया, जिसे 18 जुलाई, 1947 को पारित करके भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गयी।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा भारत को विभाजन करके भारत और पाकिस्तान नाम के दो राज्यों में बाँट दिया गया। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया।
चक्रवर्ती राज गोपालाचारी 1947-1950:
राज गोपालाचारी पहले तथा अंतिम भारतीय थे जो स्वतंत्र भारत के गवर्नर जनरल बने। यह 26 जनवरी 1950 तक इस पद पर रहे। 26जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र घोषित कर दिय गया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बने।
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