( भारतीय राष्ट्रवाद उदय एवं स्वराज संघर्ष )
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था।
इस आन्दोलन की शुरुआत 1857 में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1930 कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी।
1947 में स्वराज का अनुसरण करके, भारत कॉमनवेल्थ ऑफ़ नेशन्स में बना रहा, और भारत और यूके के बीच सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण रहे हैं पारस्परिक लाभ हेतु दोनों देश कई क्षेत्रों में मज़बूत सम्बन्धों को तलाशते हैं और दोनों राष्ट्रों के बीच शक्तिशाली सांस्कृतिक और सामाजिक सम्बन्ध भी हैं।
यूके में 16 लाख से अधिक संजातीय भारतीय लोगों की जनसंख्या हैं। 2010 में, तत्कालीन प्रधान मंत्री डेविड कैमरून ने भारत-ब्रिटिश सम्बन्धों को एक “नया ख़ास रिश्ता” बताया।
- भारतीय स्वराज आन्दोलन की अन्तिम प्रक्रिया
- भारतीय राष्ट्रीय सेना
- भारत छोड़ो आन्दोलन
- क्रिसमस द्वीप ग़दर और राजसी भारतीय नौसेना ग़दर
- युद्ध के प्रति राष्ट्रवादी अनुक्रिया
- ब्रिटिश सुधार
- गांधीजी का भारत में आगमन
- असहयोग आन्दोलन
- प्रथम असहयोग आन्दोलन
- पूर्ण स्वराज
- नमक मार्च और सविनय अवज्ञा
- चुनाव और लाहौर संकल्प
- क्रन्तिकारी आन्दोलन
कांग्रेस की स्थापना और भारतीय राष्ट्रवाद का उदय
☘ कांग्रेस के विशेष अधिवेशन ☘
वर्ष स्थान अध्यक्ष
1918 बंबई सैयद हसन इनाम
1920 कलकत्ता लाला लाजपत राय
1923 दिल्ली मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
1930 में पहली बार कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के आयोजन का क्रम टूटा। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण कांग्रेस का अधिवेशन नहीं हुआ। 1885 से लेकर 1929 तक कांग्रेस के सभी अधिवेशन दिसंबर माह में हुए।
1931 के अधिवेशन से यह कार्य जारी नहीं रह सका। 1935 में तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1941 से 1945 ईसवी के मध्य कांग्रेस का कोई अधिवेशन नहीं हुआ।
कांग्रेस के प्रथम चार अध्यक्ष क्रमशः भारतीय ईसाई, पारसी, मुस्लिम वे अंग्रेज थे। सबसे अधिक बार कांग्रेस की अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी व पंडित जवाहरलाल नेहरु ने की यह दोनों तीन तीन बार अध्यक्ष बने।
सबसे कम आयु में कांग्रेस की अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने मात्र 35 वर्ष की आयु में 1930 में दिल्ली में कांग्रेस की विशेष अधिवेशन में की। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल कभी कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता नहीं कर पाए, जबकि लाला लाजपतराय 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता में आयोजित विशेष अधिवेशन में ही अध्यक्ष बने, न कि कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में।
1937 में भी कांग्रेस का कोई अधिवेशन नहीं हुआ क्योंकि 1937 में प्रांतीय व केंद्रीय विधानमंडलों के चुनावों के कारण 1937 में होने वाला अधिवेशन दिसंबर ,1936 में ही आयोजित हो गया। इस प्रकार एकमात्र 1936 में ही कांग्रेस के दो वार्षिक अधिवेशन हुए इन दोनों अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की थी।
1936 के फैजपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने एबीसीनिया पर इटली के हमले तथा चीन पर जापान के हमले की निंदा के प्रस्ताव पारित किए।
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