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Madhya Pradesh Festivals
( मध्यप्रदेश के पर्व और उत्सव )
सभ्यता और संस्कृति के विकास में “पर्व और उत्सवो” का महत्वपूर्ण स्थान है मध्यप्रदेश में पूरे वर्ष भर विभिन्न सामाजिक और धार्मिक उत्सव ( social celebrations ) आयोजित किए जाते हैं !
भगोरिया पर्व ( Bhagoria )
फाल्गुन माह में मालवा क्षेत्र के भीलो का ये एक प्रिय उत्सव है जो होली का ही एक रूप है। यह मध्य प्रदेश के मालवा अंचल (धार, झाबुआ,खरगोन आदि) के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।
भगोरिया के समय धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है। इसकी विशेष बात यह है कि इस पर्व में आदिवासी युवक युवती अपने जीवन साथी का चुनाव करने का अवसर मिलता है भगोरिया पर्व मनाते है क्षेत्र के किसान,भील आदिवासी संस्कृति संस्कारों से लैस होकर पर्व मनाते हैं !
भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूँढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। सबसे पहले लड़का लड़की को पानखाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हाँ समझी जाती है। इसके बाद लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से भाग जाता है !
इसी प्रकार मैदान में लोग डेरा लगाते हैं हाट के दिन परिवार के बुजुर्ग डेरे में रहते हैं लेकिन अविवाहित युवक युक्तियों हाथ में गुलाब लेकर निकलते हैं कोई युवक जब अपनी पसंद की युक्ति के माथे पर गुलाल लगा देता है और लड़की उत्तर में गुलाल लड़के के माथे पर लगा देती है तो यह समझा जाता है कि दोनों एक दूसरे को जीवनसाथी बनाना चाहते हैं
पूर्व स्वीकृति की मोहर तब लग जाती है जब लड़की लड़के के हाथ से (मजुर गुड़ और भांग )खा लेती है यदि लड़की को रिश्ता मंजूर नहीं होता तो वह लड़के के माथे पर गुलाल नहीं लगाती इसी तरह यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है।
भगोरिया पर लिखी कुछ किताबों के अनुसार भगोरिया राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था। इस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भागोर में विशाल मेले औऱ हाट का आयोजन करना शुरू किया।
धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहना शुरू हुआ। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है क्योंकि इन मेलों में युवक-युवतियाँ अपनी मर्जी से भागकर शादी करते हैं इसलिए इसे भगोरिया कहा जाता है।
मेघनाथ ( Meghnath )
फाल्गुन के पहले पक्ष में यह पर्व गोंड आदिवासी मनाते हैं। इसकी कोई निर्धारित तिथि नही है। मेघनाद गोंडों के सर्वोच्च देवता हैं चार खंबों पर एक तख्त रखा जाता है जिसमें एक छेद कर पुन: एक खंभा लगाया जाता है और इस खंबे पर एक बल्ली आड़ी लगाई जाती है। यह बल्ली गोलाई में घूमती है।
इस घूमती बल्ली पर आदिवासी रोमांचक करतब दिखाते हैं। नीचे बैठे लोग मंत्रोच्चारण या अन्य विधि से पूजा कर वातावरण बनाकर अनुष्ठान करते हैं। कुछ जिलों में इसे खंडेरा या खट्टा नाम से भी पुकारते हैं।
हरेली या हरीरी ( Hareli )
:-किसानों के लिए इस पर्व का विशेष महत्व है। वे इस दिन अपने कृषि उपयोग में आने वाले उपकरणों की पूजा करते हैं। श्रावण माह की अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है। मंडला जिले यह इसी माह की पूर्णिमा को तथा मालवा क्षेत्र में अषाढ़ के महीने में मनाया जाता है। मालवा में इसे”हर्यागोधा” कहते हैं। स्त्रियां इस दिन व्रत रखती हैं।
गंगा दशमी ( Ganga Dashami )
सरगुजा जिले में आदिवासियों और गैर आदिवासियों द्वारा खाने, पीने और मौज करने के लिए मनाया जाने वाला यह उत्सव जेठ (मई-जून) माह की दसवीं तिथि को पड़ता है।
इसका नाम गंगा-दशमी होने का एक कारण है कि हिन्दुओं में यह विश्वास है कि उस दिन पृथ्वी पर गंगा का अवतरण हुआ था। यह पर्व धर्म से सीधा संबंध नहीं रखता। लोग इस दिन अपनी-अपनी पत्नी के साथ नदी किनारे खाते-पीते नाचत-गाते और तरह-तरह के खेल खेलते हैं।
संजा व मामुलिया ( Sanja )
संजा अश्विन माह में 16 दिन तक चलने वाला कुआंरी लड़कियों का उत्सव है। लड़कियां प्रति दिन दीवार पर नई-नई आकृतियाँ बनाती हैं और सायं एकत्र होकर गीत गाती हैं।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र की लड़कियों का ऐसा ही एक पर्व है मामुलिया। किसी वृक्ष की टहनी या झाड़ी (विशेषकर नींबू) को रंगीन कुरता या ओढ़नी पहनाकर उसमें फूलों को उलझाया जाता है। सांझ को लड़कियां इस डाली को गीत गाते हुए किसी नदी या जलाशय में विसर्जित कर देती हैं।
दशहरा ( Dashahara )
दशहरा प्रदेश का एक प्रमुख त्यौहार है। इसे विजयादशमी कहते हैं। कुछ क्षेत्रों में इसे विजय के प्रतिक स्वरूप राम की रावण पर विजय के रूप में मनाते हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में इस दिन लोग एक-दूसरे से घर-घर जाकर गले मिलते हैं और एक दूसरे को पान खिलाते हैं।
काकसार ( Kaksarar )
स्त्री व पुरूषों को एकान्त प्रदान करने वाला यह पर्व अबूझमाड़िया आदिवासियों का प्रमुख पर्व है। इसकी विशेष बात यह है कि युवा लड़के-लड़कियां एक दूसरे के गांवों में नृत्य करते पहुंचते हैं। वर्षा की फसलों में जब तक बालियां नही फूटती अबूझमाड़िया स्त्री-पुरूषों में एकान्त में मिलना वर्जित होता है।
काकसार उनके इस व्रत को तोड़ने का उपयुक्त अवसर होता है। काकसार में लड़के और लड़कियां अलग-अलग घरों में रात भर नाचते और आनन्द मनाते हैं। कई अविवाहित युवक-युवतियों को अपने लिए श्रेष्ठ जीवन साथी का चुनाव करने में यह पर्व सहायक सिद्ध होता है।
रतन्नवा ( Ratnnawa )
मंडला जिले के बैगा आदिवासियों का यह प्रमुख त्यौहार है। बैगा आदिवासी इस पर्व के संबंध में अपने पुराण पुरूष नागा-बैगा से बताते हैं। इस बारे में बड़ी रोचक कथा प्रचलित है- एक बार मोहती और अन्हेरा झाड़ियों में लगी शहद से एक बूंद शहद जमीन पर जा गिरी।
नागा-बैगा ने उसे उठाकर चख लिया। चखते ही सारी मधुमक्खियां बाघ बन गई। बैगा जान बचाकर भागा। जब वह घर पहुंचा, तो देखा कि सारा घर मधुमक्खियों से भरा है। उसने मधुमक्खियों को वचन दिया कि वह हर नौवें वर्ष उनके पूजन का आयोजन करेगा तब ही उसका छुटकारा हुआ।
होली ( Holi )
रंगों का पर्व होली फाल्गुन महीने में पूर्णिमा को मनाया जाता है। सभी वर्गों के लोग, यहां तक कि आदिवासी भी इसे उतसाह से मनाते हैं। इस पर्व में पांच से सात दिन प्रदेश के विभिन्न अंचलों में अलग-अलग विधियों से लकड़ियां एकत्र कर होली जलाते हैं।
इसकी आंग को प्रत्येक गांव वाला अपने घर ले जाता है। यह नई पवित्र आग मानी जाती है। दूसरे दिन से लाग तरह-तरह के स्वांग रचकर मनोरंजन करते हैं और पिचकारियों में रंग भरकर एक दूसरे पर डालते हैं। यह क्रम कई दिन तक चलता है। होली का पर्व लगभग सभी हिन्दू त्यौहारों में सर्वाधिक आनंद, उमंग और मस्ती भरा त्यौहार है।
गोवरधन पूजा ( Govardhan )
कार्तिक माह में दीपावली के दूसरे दिन गोवरधन पूजा होती है। यह पूजा गोवर्धन पर्वत और गौधन से संबंधित है। महिलाएं गोबर से पर्वत और बैलों की आकृतियां बनाती हैं। मालवा में भील आदिवासी पशुओं के सामने अवदान गीत होड़ गाते हैं। गौड़ या भूमिया जैसी जातिया यह पर्व नहीं मनाती पर पशु पालक अहीर इस दिन खेरदेव की पूजा करते हैं। चंद्रावली नामक कथागीत भी इस अवसर पर गाया जाता है।
लारूकाज ( Larukas )
गोंडों का नारायण देव के सम्मान में मनाया जाने वाला यह पर्व सुअर के विवाह का प्रतीक माना जाता है। आज कल यह पर्व शनै:-शनै: लुप्त होता जा रहा है। इस उत्सव में सुअर की बलि दी जाती है। परिवार की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए इस तरह का आयोजन एक निश्चित अवधि के बाद करना आवश्यक होता है।
मड़ई ( Bandy )
जनवरी से अप्रैल के बीच दक्षिण मध्य प्रदेश के अनेकों क्षेत्रों में जहां गोंड और उनकी उपजाति रहती है मड़ई का आयोजन किया जाता है यहां 10 से 12 दिन चलता है मड़ई के दौरान देवी के समक्ष बकरे की बलि दी जाती है उसी दौरान आदिवासी अपनी औकात देव के प्रति व्यक्ति का प्रदर्शन करते हैं मड़ई के दिनों में रात्रि को नृत्य किया जाता है
गणगौर ( Gangore )
शिव और पार्वती की पूजा वाला यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में इसे गौर कहते हैं और कार्तिक में मनाते हैं । यह महिलाओं का पर्व है। मालवा में इसे दो बार मनाया जाता है।
चैत (मार्च-अप्रैल) तथा भादो माह में स्त्रियां शिव-पार्वती की प्रतिमाएं बनाती हैं तथा पूजा करती हैं, पूजा के दौरान महिलाएं नृत्य करती हैं। बताशे बांटती हैं और प्रतिमाओं को जलाशय या नदी में विसर्जित करती हैं। विभिन्न भागों में इस पर्व से संबंधित अनेक जनश्रुतियाँ हैं।
भाईदूज ( bhaiduj )
साल में दो बार मनाई जाती है। एक चैत माह में होली के उपरांत तथा दूसरी कार्तिक में दीपावली के बाद। यह रक्षाबंधन की तरह ही है। बहनें भाई को कुमकुम, हल्दी, चावल से तिलक करती हैं तथा भाई, बहिनों को उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।
इस पर्व से संबंधित एक प्रचलित कथा इस प्रकार है। यमुना (नदी), यमराज (मृत्यु के देवता), की बहन थी एक बार यमराज भाईदूज के दिन बहन से टीका कराने कुछ उपहार आदि लेकर पहुंचे तो यमुना ने उपहार लेने से इंकार कर दिया और कहा हे भाई!
मृत्यु के स्वामी ! मुझे वचन दो कि आज के दिन जो भाई, बहिन से टीका कराएगा, उसकी उम्र में एक दिन बढ़ जाएगा। यमराज ने कहा “तथास्तु”।इस तरह की अनेक कहानियां इस संबंध में प्रचलित हैं।
आखातीज ( Akhatij )
छत्तीसगढ़ की अविवाहित लड़कियों का प्रमुख त्यौहार है। वैशाख (अप्रैल-मई) माह का यह उत्सव दूसरे अर्थों में विवाह का स्वरूप लिए है। इसमें अकाव की डालियों का मंडप बनाते हैं। इसके नीचे पड़ोसियों को दावत दी जाती है । कुछ स्थानों पर इसे अक्षय तृतीया भी कहते हैं।
नीरजा ( Neerja )
नौ दिन तक चलने वाला महिलाओं का यह उत्सव दशहरे के पूर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर स्त्रियाँ मां दुर्गा की पूजा करती हैं। “मालवा” के कुछ क्षेत्रों में गुजरात के “गरबा उत्सव” को कुछ स्थानीय विशेषताओं के साथ इन दिनों मनाते हैं।
घड़ल्या
नीरजा के नौ दिनों में लड़कियां घड़ल्या भी मानती हैं। समूह में लड़कियां, एक लड़की के सिर पर छिद्रयुक्त घड़ा रखती है जिसमें दीपक जल रहा होता है। फिर दरवाजे-दरवाजे जाती हैं और अनाज या पैसा एकत्र करती है। अविवाहित युवक भी इस तरह का एक उत्सव “छला” के रूप में मनाते हैं।
सुआरा ( Suaraa )
बुंदेलखण्ड क्षेत्र का “सुआरा” पर्व मालवा के घड़ल्या की तरह ही है। दीवार से लगे एक चबूतरे पर एक राक्षस की प्रतिमा बैठाई जाती है। राक्षस के सिर पर शिव-पार्वती की प्रतिमाएं रखी जाती है। दीवार पर सूर्य और चन्द्र बनाए जाते हैं। इसके बाद लड़कियां पूजा करती हैं और गीत गाती हैं।
नवान्न
नई फसल पकने पर दीपावली के बाद यह पर्व मनाया जाता है कहीं-कहीं यह छोटी दीपावली कहलाती है !
रनोता ( Ranota )
यह बैगा आदिवासियों का प्रमुख त्योहार है इस पर्व का संबंध नागा वेगा से है इस अवसर पर मधुमक्खियों की पूजा की जाती है !
करमा ( Karma )
हरियाली आने की खुशी में यह त्यौहार मुख्य रूप से उरांव मनाते हैं जब धान रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं तब यह उत्सव मनाया जाता है और करमा नृत्य किया जाता है !
सरहुल ( Sarahul )
यह उरांव जनजाति का महत्वपूर्ण त्यौहार है इस अवसर पर प्रतीकात्मक रुप से सूर्य देव और धरती माता का विवाह रचाया जाता है मुर्गे की बलि दी जाती अप्रैल के आरंभ में साल वृक्ष के फलने पर यह त्यौहार मनाया जाता है !
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No of Questions-20
Share your Results:Q.1 भगोरिया किस जनजाति का सबसे प्रिय पर्व माना जाता है ?
Q.2 गोंड जनजाति का नारायण देव के सम्मान में मनाया जाने वाला कौन सा पर्व सूअर के विवाह का प्रतीक माना जाता है ?
Q.3 राम की रावण पर विजय के उपलक्ष में मनाया जाने वाला त्यौहार( पर्व )है ?
Q.4 हरेली (हरीली)नामक पर्व मालवा में किस नाम से मनाया जाता है ?
Q.5 निम्नलिखित कथनों में से असत्य कथन का चुनाव करिए ?
Q.6 निम्नलिखित में से किस पर्व को छोटी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है ?
Q.7 निम्नलिखित युग्मों में से कौन सा युग में सुमेलित नहीं है ?
Q.8 निम्नलिखित कथनों में से कौन सा कथन असत्य है ?
Q.9 निम्नलिखित युग्मों में से कौन सा युग्म सुमेलित नहीं है ?
Q.10 गणगौर पर्व पर किस देवी देवता की पूजा की जाती है ?
Q.11 गोवर्धन पूजा की जाती है ?
Q.12 भील आदिवासी पशुओं के सामने "होड़" गाते कहते हैं यह पर्व प्रमुख रूप से किस अंचल में मनाया जाता है ?
Q.13 मेघनाथ पर्व कौन से के आदिवासी लोग मनाते हैं ?
Q.14 होली का पर्व मनाया जाता है ?
Q.15 संजा (मामूलिया) कुंवारी लड़कियों का उत्सव है यह कितने दिनों तक चलने वाला पर्व है ?
Q 16.निम्न में से सामाजिक पर्व है?
Q17.नयी फसल फकने परकौन सा पर्व मनाते है ?
Q 18.भीलजनजाति के युवक युवतियां किस पर्व में अपना जीवन साथी का चुनाव करती है ?
Q19.मुख्य रूप से किसानों का पर्व कौन सा है?
Q 20.कुँवारी लड़कियों का कौन सा पर्व है?
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
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