Puran Sampradayon ( प्राचीन भारत का इतिहास- पुराण सम्प्रदायों )
पुराण सरल एवं व्यवहारिक भाषा में लिखे गए जनता के ग्रंथ है जिसमें प्राचीन ज्ञान -विज्ञान, पशु-पक्षी, वनस्पति विज्ञान, आयुर्वेद इत्यादि का विस्तृत वर्णन मिलता है। पुराण का शाब्दिक अर्थ है “प्राचीन आख्यान”, इसके अंतर्गत प्राचीन शासकों की वंशावलियाँ पाते हैं, जिसके संकलनकर्ता “महर्षि लोमहर्ष” अथवा उनके सुपुत्र “उग्रश्रवा” माने जाते हैं।
पांचवीं से चौथी शताब्दी ई.पू. में पुराण ग्रंथ अस्तित्व में आ चुके थे। वर्तमान पुराण गुप्त काल के आसपास के है। मुख्य पुराणों की संख्या-18 है-
1.मत्स्य पुराण
2.मार्कण्डेय पुराण
3.भविष्य पुराण
4.भागवत पुराण
5. ब्रह्मांड पुराण
6.ब्रह्मावैवर्त पुराण
7. ब्रह्मा पुराण
8. वामन पुराण
9. वाराह पुराण
10.विष्णु पुराण
11.वायु पुराण
12.अग्नि पुराण
13.नारद पुराण
14.पदम पुराण
15.लिंग पुराण
16.गरुड़ पुराण
17.कूर्म पुराण एवं
18.स्कंद पुराण
ये सभी महापुराण कहलाते है।
मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन एवं प्रमाणित है। पुराणो को प्राचीन भारत के संदर्भ में “विश्व कोष” कहा जाता है। विष्णु, मत्स्य, वायु तथा भागवत पुराण सर्वाधिक ऐतिहासिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इन में राजाओं की वंशावली आ पाई जाती है ।
विष्णु पुराण से मौर्य वंश की, वायु पुराण से गुप्त वंश के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
मत्स्य पुराण:- सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रमाणिक् पुराण, इसके द्वारा सातवाहन वंश के बारे में जानकारी मिलती है। विष्णु पुराण में भारत का वर्णन है। “समुद्र के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में जो स्थित है वह भारत देश है तथा वहां की संताने भारती है।”
पुराणों में ऐतिहासिक कथाओं का क्रमबद्ध विवरण मिलता है, पुराणों के रचयिता लोमहर्ष व उनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं।
राजवंश पुराण
- मौर्य वंश – विष्णु पुराण
- शुंग , सातवाहन वंस – मत्स्य पुराण
- गुप्त वंश – वायु पुराण
अमरकोष में पुराणों के 5 विषय बताए गए हैं।
- सर्ग सृष्टि (जगत की सृष्टि)
- प्रतिसर्ग सृष्टि (प्रलय के बाद पुनः सृष्टि)
- वंश (देवताओं व ऋषियो के वंश)
- वंशानुचरित (राजवंश)
- मन्वंतर (अनेक मनु, महायुग)
भागवत धर्म:-
वैष्णव धर्म का अत्यंत प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप। ‘भागवत धर्म’ का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान् हों। और वासुदेव कृष्ण ही ‘भगवान्’ शब्द वाच्य हैं (कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् : भागवत) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं
जिनकी आराधना भक्ति के द्वारा सिद्ध होकर भक्तों को भगवान् का सान्निध्य तथा सेवकत्व प्राप्त कराती है। सामान्यत: यह नाम वैष्णव संप्रदायों के लिए व्यवहृत होता है, परंतु यथार्थत: यह उनमें एक विशिष्ट संप्रदाय का बोधक है। भागवतों का महामंत्र है ‘ओं नमो भगवते वासुदेवाय’ जो द्वादशक्षर मंत्र की संज्ञा से विभूषित किया जाताहै।
पांचरात्र तथा वैखानस मत ‘नारायण’ को ही परम तत्व मानते हैं, परंतु इनसे विपरीत भागवत मत कृष्णवासुदेव को ही परमाराध्य मानता है।ईसवी पूर्व प्रथम शतक में महाक्षत्रप शोडाश (80 ई. पूर्व से 57 ई. पू.) मथुरा मंडल का अधिपति था बेसनगरका प्रख्यात शिलालेख (200 ई. पू.) इस विषय में विशेष महत्व रखता है।
भागवत मत का सर्वश्रेष्ठ मान्य ग्रंथ है : श्रीमद्भागवत जो अष्टादश पुराणों में अपने विषयविवेचन की प्रौढ़ता तथा काव्यमयी सरसता के कारण सबसे अधिक महत्वशाली है।
इस प्रकार भगवान् का स्वरूप तीन प्रकार का प्रतीत होता है :.
- (क) स्वयंरूप
- (ख) तदेकात्मक रूप और
- (ग) आवेशरूप।
साधन पक्ष:-
भगवान् की उपलब्धि का एकमात्र साधन है
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No of Question -10
1 कितने पुराणों में राजाओं की वंशावलीया मिलती है
2 सबसे प्रामाणिक पुराण कौनसा है
3 किसमें भारत को जम्बूद्वीप कहा गया हैः
4 पुराणों की तरफ र्सवप्रथम ध्यान आकृष्ट किया था
5 पुराणों में कितने युग बताये गये है
6 असत्य कथन बताइये
7 किस पुराण में श्रीपुर को कलिंग का एक नगर माना है
8 हिन्द यवनों के भारत में आक्रमण त्रिसामा नदी तक करने की जानकारी मिलती है
9 पुराणों में शुंग वंश को कहा गया है
10 विष्णु पुराण के अनुसार मौर्य शासकों का क्रम व्यवस्थित किजिए
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Specially thanks to Post and Quiz maker ( With Regards )
कमलनयन पारीक अजमेर, रमेश डामोर सिरोही, भंवरसिहं भाटी , बाड़मेर