State Finance Commission ( राज्य वित्त आयोग )
73वें Constitution amendment अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि राज्यों के राज्यपाल 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के परिवर्तन के 1 वर्ष की अवधि में यथाशीघ्र और उसके पश्चात प्रति 5 वर्ष के अंतराल पर संविधान के अनुच्छेद 243 आई (243 झ) के तहत एक अध्यक्ष और अधिकतम 4 अन्य सदस्यों सहित वित्त आयोग का गठन करेगा कि पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करेगा ।
अनुच्छेद 280 के तहत, केंद्र के Finance Commission की तर्ज पर 1993 से भारत के सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग की स्थापना की गयी थी जिसका उद्देश्य पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करना और इसके लिए निम्न रूपों में सिफारिश करना होता है –
(i) राज्य द्वारा लगाये गये करों, शुल्कों, टोल और फीस की विशुद्ध आय का पंचायतों तथा राज्य के बीच आवंटन करना जिसे दोनों के मध्य विभाजित किया जा सकता है और पंचायत के विभिन्न स्तरों पर खर्च या आवंटित किया जा सकता है।
(ii) पंचायतों को कितने कर, शुल्क, टोल और फीस सौंपी जा सकती है, का निर्धारण करना
नगर निकायों की वित्तीय समीक्षा ( Financial review of municipalities )
संविधान संशोधन अधिनियम में यह प्रावधान भी किया गया है कि पंचायती राज संस्थाओं के लिए संविधान के अनुच्छेद 243 के अंतर्गत गठित आयोग संविधान के अनुच्छेद 243 वाई के तहत नगर निकायों की वित्तीय स्थिति की भी समीक्षा कर सकेगा
- राजस्थान राज्य के प्रथम वित्त आयोग अध्यक्ष कृष्ण कुमार गोयल थे 1995 से 2000
- दूसरे वित्त आयोग के अध्यक्ष हीरालाल देवपुरा थे 2000 से 2005 तक
- तीसरे माणिक चंद सुराणा 2005 से 2010
- चौथे वित्त आयोग अध्यक्ष बीडी कल्ला थे 2010 से 2015
- पांचवे वित्त आयोग अध्यक्ष श्रीमती ज्योति किरण 2015 से 2020 तक का कार्यकाल है
5 वित्त आयोग की सिफारिशें
1.सरकार की कुल आय का 7.182 प्रतिशत पंचायती राज संस्थाओं को
2. जिला जितना पिछड़ा होगा उतना ही ज्यादा अनुदान
जिला परिषदों, पंचायत समितियों की हिस्सेदारी बढ़ाई
जिला परिषद और पंचायत समिति के बढ़ाएं जिला परिषदों को 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया है पंचायत समितियों के लिए 12% से बढ़ाकर 15% कर दिया है
Rajasthan state Finance Commission ( राजस्थान राज्य वित्त आयोग )
राजस्थान राज्य प्रथम वित्त आयोग
- 24 अप्रैल 1994
- कृष्ण कुमार गोयल
- 1 अप्रैल 1995 – 31 मार्च 2000
राजस्थान राज्य दूसरा वित्त आयोग
- 7 मई 1990
- हीरालाल देवपुरा
- 1 अप्रैल 2000 – 31 मार्च 2005
राजस्थान राज्य तीसरा वित्त आयोग
- मई 2004
- माणिक चंद सुराणा
- 1 अप्रैल 2005 – 31 मार्च 2010
राजस्थान राज्य चतुर्थ वित्त आयोग
- 13 अप्रैल 2011
- डॉ B D कल्ला
- 1 अप्रैल 2010 – 31 मार्च 2015
राजस्थान राज्य पंचम वित्त आयोग
- 31 मई 2015
- डॉ ज्योति किरण
- 1 अप्रैल 2015 – 31 मार्च 2020
राज्य वित्त आयोग द्वारा अनुदानित विभिन्न क्षेत्र
- जेल प्रशासन.
- स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं.
- सार्वजनिक पुस्तकालयों.
- जिलों के प्रशासन.
- पुलिस प्रशासन.
- प्रारंभिक शिक्षा.
- फायर सेवाओं.
- इंफ्रास्ट्रक्चर विकास.
- स्कूली बच्चों के लिए कंप्यूटर का प्रशिक्षण.
- राजकोषीय प्रशासन.
- विरासत संरक्षण
राज्य वित्त आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं:-
राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों की आर्थिक स्थिति की समीक्षा करना।राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और Panchayati Raj संस्थाओं की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न कदम उठाना। राज्य की संचित निधि से राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों को धन आवंटित करना।वित्तीय मुद्दों के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना। केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान की जानी वाली धनराशि का सदुपयोग करना।राज्य सरकार द्वारा लगाये गये करों, शुल्कों, टोल, और अधिशुल्कों का राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और पंचायती राज संस्थाओं की बीच आवंटन करना।कर, टोल, शुल्क, और फीस, जिसे राज्य में विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों द्वारा लगाया जा सकता है, का निर्धारण करना।
संविधान के अनुच्छेद 243-I का संबंध वित्त आयोग है जो पंचायतों के विशेष मूल्यांकन के लिए वित्तीय स्थिति समीक्षा करता है। भारत में पंचायती राज संस्था की अवधारणा और आकांक्षा को उपयोग में लाने के लिए राज्य वित्त आयोग की भूमिका बहुत महत्तवपूर्ण है। यदि पर्याप्त स्वायत्तता और अधिकार के साथ अंतिम रैंक के अधिकारी तक वित्त आसानी या सावधानी से उपलब्ध होता है तो सत्ता के अंतरण को महसूस किया जा सकता है। इन पहलुओं के मद्देनजर राज्य वित्त आयोग की भूमिका को देखा जा सकता है-
सकारात्मक पक्ष :
लोकतंत्र के विचार को बढ़ावा देना सरकार और शासन के वृहद विकासवादी पहलू।स्थानीय लोगों और स्थानीय नेताओं का सशक्तिकरण।दूरस्थ क्षेत्रों के लिए धनराशि का सही मात्रा और समय पर पहुंचना
नकारात्मक पक्ष:
राज्य अपने वित्तीय अधिकारों का प्रय़ोग करने में अनिच्छुक रहे हैं।राज्य वित्त आयोग स्वायत्तता में बहुत अधिक हस्तक्षेप और अतिक्रमण का कार्य कर रहा है राज्यों के पास स्वंय के खर्चे के लिए पर्याप्त धन नहीं है जिस वजह से धन राशि को साझा करने के कारण मामूली धनराशि का राज्य सरकार द्वारा हमेशा विरोध किया जाता हैअभी तक राज्य वित्त आयोग के विचार को सच्ची भावना में लागू नहीं किया जा सका है।
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No of Questions-12
प्रश्न=1- राज्यपाल द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के लिए राज्य वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किस अनुच्छेद के तहत है?
प्रश्न=2- वित्त का बटवारा करने हेतु राज्यपाल द्वारा नगरीय निकायों के लिए किस अनुच्छेद के तहत वित्त आयोग का गठन का प्रावधान है?
प्रश्न=3- राज्य वित्त आयोग अपनी रिपोर्ट किसको प्रस्तुत करता है?
प्रश्न=4- निम्न कथनों पर विचार कीजिए? A प्रथम वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री अमर सिंह राठौड़ थे B राज्य वित्त आयोग का कार्यकाल 5 वर्ष या 62 वर्ष की आयु जो भी पहले है
प्रश्न=5- तृतीय वित्त आयोग के अध्यक्ष थे?
प्रश्न=6- निम्न में से राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष नहीं रहे हैं?
प्रश्न=7- पांचवें वित्त आयोग की पंचांट अवधि है?
प्रश्न=8- हीरालाल देवपुरा कौन से वित्त आयोग के अध्यक्ष थे?
09. जिला नवाचार कोष की स्थापना किसके द्वारा की गई ?
10. राजस्थान में चौथे वित्त आयोग के अध्यक्ष कौन है ?
11. राजस्थान वित्त आयोग के बारे में असत्य है ?
12. निम्नलिखित में से कोनसा अधिकारी करों तथा शुल्कों के निर्धारण के सम्बंध से राज्यपाल से अनुशंसा कर सकता है ?
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Specially thanks to ( With Respects )
प्रभुजी स्वामी चूरु, पवन जी परोहित नागोर, प्रकाश कुमावत, प्रियंका जी गर्ग
Good link hai dosto….
प.20,1,वित्त/नियम 92-4 29/04/2003 mujhe ye Nigam bhejo
बहुत अच्छा लिंक है । धन्यवाद