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उत्तर प्रदेश की मिट्टी ( Uttar Pradesh Soils )
मृदा में खनिज, जैव पदार्थ, जल व वायू के अलावा कई प्रकार के सूक्ष्म जीव भी पाए जाते है। उत्तर प्रदेश को तीन भौतिक विभागों में विभाजित किया गया है, जिसका एक आधार भूमि की बनावट भी है।अतः प्रदेश के मृदा का अध्यन हम इन्ही विभागों के क्रम करेंगे
- भाभर एवं तराई क्षेत्र की मिट्टी
- मध्य के मैदानी क्षेत्र की मिट्टी
- दक्षिण के पहाड़ी पठारी क्षेत्र के मिट्टी
1. भभर एवं तराई क्षेत्र की मृदायें:-
प्रदेश का उत्तरी अर्थात भवँर क्षेत्र हिमालयी नदियों के भारी निक्षेपों से निर्मित होने के कारण यंहा की मिट्टी कंकडों पत्थरो तथा मोठे बलुओ से निर्मित है जो कि काफी छिछली है।अतः जल नीचे चला जाता है इस क्षेत्र में कृषि कार्य असम्भव है यहां ज्यादातर झाड़ियां एवं वन पाए जाते है।
जबकि महीन कणों के निक्षेप से निर्मित तराई क्षेत्र की मृदा समतल दलदली, नम और उपजाऊ होती है इस मृदा में गन्ने एवं धान की पैदावार अछि होती है।
2. मध्य मैदानी क्षेत्र की मृदायें:-
मध्य भाग में स्थित विशाल गंगा-यमुना मैदान प्लीस्टोसीन युग से आज तक विभिन्न नदियों के निक्षेपो से निर्मित है इस मैदान में पाई जाने वाली मृदा को जलोढ़ य कछारी या भात मृदा कहते है जो कि कांप की मिट्टी , कीचड़, एवं बालू से निर्मित है यह मृदा बहुत गहरी है और पूर्ण विकशित दशा है
इसमे पोटाश एवं चूना प्रचुर मात्रा में मिलता है, जबकि फास्फोरस, नाइट्रोजन और जीवांश का अभाव होता है। इस मैदान की मृदा को दो वर्गों में विभाजित किया गया है- खादर या कछारीय या नवीन जलोढ़ मृदा तथा बांगर या पुरानी जलोढ़ मृदा। इस क्षेत्र में लवणीय, क्षारीय, मरुस्थलीय, भूड तथा काली मृदाए भी पाई जाती है।
खादर मृदा:- जो मृदा नदियों द्वारा प्रत्येक बाढ़ के साथ परिवर्तित होती रहती है उसे खादर या कछारी या नवीन जलोढ़ मृदा कहा जाता है।
यह मृदा हल्के भूरे रंग की, छिद्र युक्त महीन कणों वाली एव जल करने की क्षमता वाली होती है इनमे चूना, पोटाश, मैग्नीशियम तथा जैव तत्वों की मात्रा अधिक होती है इसे बलुआ,य सिल्ट बलुआ,दोमट आदि नामों से जाना जाता है मिट्टी की उर्वरता शक्ति अधिक होती है
बांगर मृदा:- गंगा यमुना मैदानी क्षेत्र का वह भाग जंहा नदियों के बाढ़ का जल नही पहुँच पाता है वँहा की मृदा को बांगर या पुरानी जलोढ़ मृदा कहा जाता है इसे उपहार मृदा, दोमट, मटियार आदि नामों से जाना जाता है इस क्षेत्र की की मिट्टियां परिपक्व तथा अधिक गहरी होती है निरंतर कृषि उपयोग में आने के कारण इनकी उर्वरा शक्ति क्षीण हो गयी है और खाद देने की आवश्यकता होती है।
लवणीय तथा क्षारीय मृदा:- प्रदेश के बांगर मृदा वाले क्षेत्र में भूमि के समतल होने और जल निकशी का उचित प्रबंध न होने, नहरों से सिंचाई किये जाने,वर्ष की कमी,जुताई एक गहरे तक करते रहने से क्षारीय उर्वरको के लगातार प्रयोग आदि कारणों से लगभग 10 प्रतिशत भूमि ऊसर हो चुकी है जो कि प्रदेश के अलीगढ़,मैनपुरी, कानपुर, उन्नाव,एटा,इटावा,रायबरेली,सुल्तानपुर, प्रतापगढ़,जौनपुर,इलाहाबाद, आदि जिलों में पाई जाती है इसे रह, बंजर तथा कल्लर नामो से भी जाना जाता है।
- यह दो प्रकार की होती है- लवणीय ऊसर भूमि तथा क्षारीय ऊसर भूमि
- क्षारीय ऊसर भूमि भी दो प्रकार की होती है- रेहयुक्त ऊसर और रेहहीन ऊसर।
- लवणीय ऊसर भूमि के लवण अधिकांशतः सोडियम, पोटैशियम, सलफेट व कैल्सियम के बने होते है जो कि भूमि के ऊपरी सतह पर सफेद परत के रूप में देखे जा सकते है। इनका ph 8.5 से कम होता है।
मरुस्थलीय मृदा:- उत्तर प्रदेश के कुछ पश्चिमी जिलों मथुरा, आगरा, अलीगढ़ में यह मृदा पायी जाती है। शुष्कता व भीषण ताप के कारण चट्टानें विखंडित होकर बालू के कणों में परिणत हो जाती है। इसमे लवण व फॉस्फोरस अधिक मात्रा में पाए जाते है जबकि नाइट्रोजन का अभाव होता है।उत्तर प्रदेश के कुछ पश्चिमी जिलों मथुरा, आगरा, अलीगढ़ में यह मृदा पायी जाती है। शुष्कता व भीषण ताप के कारण चट्टानें विखंडित होकर बालू के कणों में परिणत हो जाती है। इसमे लवण व फॉस्फोरस अधिक मात्रा में पाए जाते है जबकि नाइट्रोजन का अभाव होता है।
काली मृदा (रेगुर):- प्रदेश के पश्चिमो जिलों तथा बुंदेलखंड क्षेत्र में कही कहि काली मृदा भी पाई जाती है जिसे स्थानीय भाषा मे केरल या कपास मृदा कहा जाता है
लाल मृदा:- यह मृदा दक्षिणी इलाहाबाद, झांशी, मिर्जापुर, सोनभद्र, चंदौली जिलों में पाई जाती है
भूड़ मृदा- गंगा-यमुना व उनकी सहायक नदियों के बाढ़ वाले क्षेत्रों में बलुई मिट्टी के 10-20 फीट ऊंचे टीलों को भूड़ कहा जाता है। यह मृदा हल्की दोमट बलुई होती है।
3. दक्षिण के पहाड़ी-पठारी क्षेत्र की मृदाएं-
प्रदेश के दक्षिणी भाग में प्री-केम्बियन युग की चटटानो का बाहुल्य है। इस क्षेत्र में ललितपुर, झांसी, जालौन, हमीरपुर, महोबा, बाँदा, चित्रकूट,सोनभद्र और चन्देली आदि जिले सम्मिलित है। यहां कई प्रकार की मृदाएं पायी जाती है- लाल मिट्टी, परवा, मार(माड़), राकर, भोंटा आदि।
लाल मृदा- यह मृदा दक्षिणी इलाहाबाद, झांसी, मिर्ज़ापुर, सोनभद्र, चंदौली जिलों मे पायी जाती है। इस मृदा का निर्माण विंध्य चट्टानों के टूटने से हुआ है। इसमे नाइट्रोजन, फास्फोरस, चुना की कमी तथा लोह अंश की अधिकता पायी जाती है। अतः यहाँ दलहन व तिलहन की खेती की जाती है।
परवा मृदा- इसे पड़वा भी कहा जाता है। यह हमीरपुर, जालौन, बीहड़ो में पायी जाती है। यह हल्के लाल-भूरे रंग की बलुई-दोमट मृदा है जिसमे जैव तत्वों की कमी होती है। इसमे ज्वार(खरीफ) और चना(रबी) की फसल उगाई जाती है।
मार(माड़) मृदा- यह मृतिका मृदा है जिसका रंग काला होता है। इसमे कृषि कार्य काठी होता है क्योंकि जल की कमी होती है और जल पाने पर यह चिपचिपी हो जाती है। अतः इसमे अल्पावधि की फसल उगाई जाती है। यह पश्चिमी जिलों में पाई जाती है।
राकर(राकड) मृदा- यह लाल भूरे रंग की दानेदार मृदा है। इसमे तिल(खरीफ) और चने(रबी) की खेती की जाती है।
भोंटा मृदा- इसका निर्माण विंध्य श्रेणी की चट्टानों के टूटने फूटने से होता है।इसमे मोटे अनाजो की खेती की जाती है।
लगभग सम्पूर्ण बुंदेलखंड क्षेत्र में शुष्क खेती की जाती है और उपज औसत होती है।
?मृदा अपरदन (Soil Erosion)?
जल और वायु के साथ मृदा के कटने बहने अथवा उड़ने की क्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है। मृदा अपरदन आज हमारी कृषि भूमि के लिए सबसे भयानक खतरा है।
मृदा अपरदन के दो प्रमुख प्रकार होते है- जलीय अपरदन व वायु अपरदन होते है। उत्तर प्रदेश में जलीय अपरदन का अधिक प्रभाव है।
जलीय अपरदन- भूमि पर वनस्पतियों का अभाव, ढालदार स्थानों पर खेती करना, अनियंत्रित वर्षा या बाढ़ के समय खेतो को खाली रखना, वनों की अनियंत्रित कटाई आदि से जलीय अपरदन तीव्र गति से होता है। इसके कई रूप है यथा परत अपरदन, अप्सफुरण, क्षुद्र अपरदन, अवनालिका क्षरण, सरिता तट क्षरण आदि।
- परत अपरदन समतल खेतो में बहुत सूक्ष्म तरीके से होता है जिसे किसान समझ नही पाता और खेत की उर्वरता कम होती रहती है। इसीलिए इसे किसान की मौत कहा जाता है।
- क्षुद्र सरिता क्षरण थोड़ी ढालदार खेतो में होता है और पतली पतली नालियों के रूप में दिखाई देता है।
- अवनालिका क्षरण थोड़ी या अधिक ढालदार खेतो में होता है जो क्षुद्र सरिता का ही बड़ा रूप है।
- प्रदेश का यमुना और चम्बल क्षेत्र मुख्यतः इटावा अवनालिका क्षरण से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है।
वायु अपरदन- प्रदेश में वायु अपरदन गर्मी के महीनों में अधिक होता है जिससे दक्षिण पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 3200 एकड़ कृषि योग्य भूमि का प्रतिवर्ष विनाश हो रहा है। प्रदेश के आगरा, मथुरा, इटावा आदि जिले इससे ज्यादा प्रभावित है।
Uttar Pradesh Soils important Facts and Quiz
- गंगा -यमुना मैदान में मुख्यता पाई जाती है- जलोढ़ मृदा
- नवीन व प्राचीन जलोढ मृदा को जाना जाता है – खादर व बांगर नाम से
- जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ है- कांप, कीचड़ व बालू से
- रेन्गुर, केरल व कपास मृदा के नाम से जाना जाता है- काली मृदा को
- प्रदेश में सबसे अधिक मृदा अपरदन होता है- जल से
- जलोढ़ मृदा में पोटाश एवं चुना की अधिकता होती है लेकिन कमी होती है- फास्फोरस, नाइट्रोजन व जैव तत्वों की
- स्थानीय भाषा मे पुरानी जलोढ़ मिट्टी ,उपहार,दोमट आदि कहा जाता है- बांगर मृदा में
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No of Questions-10
Share your Results:Q.1 लाल मिट्टी पायी जाती है? 【pcs main-2004】
Q.2 प्रदेश में अवनालिका अपरदन से सबसे अधिक प्रभावित जिला कौन सा है? 【pcs main 2011】
Q.3 प्रदेश में वायु मृदा अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है? 【pcs pre 2003】
Q.4 प्रदेश में कुल मृदा समूह क्षेत्र है?
Q.5 प्लेस्टोसीन युग से आज तक नदियों के निक्षेपो से बना है?
Q.6 गंगा यमुना मैदान में मुख्यतः पायी जाती है?
Q.7 स्थानीय भाषा मे नवीन जलोढ़ मिट्टी, बलुआ, मटियार आदि नामो से जानी जाने वाली मिट्टी है?
Q.8 रेन्गुर, करेल व कपास मृदा के नाम से जाना जाता है?
Q.9 लाल मृदा, परवा, मार, राकर, भोंटा आदि मिट्टिया पायी जाती है?
Q.10 प्रदेश में अधिक मृदा अपरदन होता है?
Specially thanks to Post and Quiz makers ( With Regards )
चिराग बालियान मुज़फ्फरनगर, रविकान्त दिवाकर कानपुर नगर उत्तर प्रदेश,