आदेश की एकता | संगठन के सिद्धांत | Organization Theory – Unity of command

आदेश की एकता का अर्थ

आदेश की एकता से अभिप्राय है कि एक कर्मचारी को एक ही पदाधिकारी का अधीनस्थ होना चाहिए और उसे केवल एक ही उच्च अधिकारी से आदेश और निर्देश प्राप्त होने चाहिए। किसी कर्मचारी को केवल एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा ही आदेश दिए जाने चाहिए। आदेश की एकता के प्रमुख समर्थकों में हेनरी फेयोल, पिफ्नर, प्रेस्थस, लूथर गुलिक तथा शास्त्रीय सिद्धांत के समर्थक शामिल है। प्रमुख आलोचकों में एफ डब्ल्यू टेलर, सेकलर हडसन एवं साइमन है।

हेनरी फेयोल का मानना है कि आदेश की एकता के उल्लंघन से सता कमजोर हो जाती है। अनुशासन खतरे में पड़ जाता है। व्यवस्था भंग हो जाती है और स्थायित्व संकट में पड़ जाता है।

लूथर गुलिक ने बड़े रोचक ढंग से कहा है कि यदि इस सिद्धांत का कठोरता से पालन किया जाए तो हो सकता है कि कुछ घातक परिणाम पैदा होंगे किंतु यह प्रणाम मतिभ्रम अकार्यकुशलता और अनुत्तरदायित्व की तुलना में कुछ भी नहीं है जो इस सिद्धांत का उल्लंघन करने पर पैदा होंगे।

आदेश की एकता सिद्धांत की आलोचना-

आदेश की एकता सिद्धांत की सबसे बड़ी कमजोरी है कि इसे हर जगह हर परिस्थिति में लागू नहीं किया जा सकता है। सरकारी परिस्थितियों में प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक उच्च अधिकारी की संकल्पना कभी-कभी ही मिलती है।

इस सिद्धांत के कमजोर पक्ष पर ध्यान आकृष्ट करते हुए सेकलर हडसन का कहना है कि एक व्यक्ति एवं एक अधिकारी की पुरानी अवधारणा वर्तमान जटिल शासकीय परिस्थितियों में सत्य नहीं है। आदेश की सरल सीधी रेखा के बाहर अनेक अंतः संबंध विद्यमान है। फलस्वरूप अनेक लोगों को प्रतिवेदन देने पड़ते हैं एवं उनके साथ कार्य करना पड़ता है जिससे व्यवस्थित एवं प्रभावशाली तरीके से कार्य संपन्न किया जा सके। शासन में एक प्रशासक के कई स्वामी होते हैं और वह उनमें से किसी की भी उपेक्षा नहीं कर सकता है।

सिद्धांत की आलोचना करते हुए टेलर ने लिखा है कि इससे “सैनिक प्रकार की चौधराहट” का विकास होता है। टेलर ने प्रकार्यात्मक फोरमैन शिप का सिद्धांत प्रतिपादित किया।

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आदेश की एकता को प्रभावित करने वाले कारक-

  1. सूत्र एवं सहायक अभिकरण का विकास।
  2. विकासशील प्रशासन के लिए अनुपयुक्त
  3. नित्य नए तकनीकी आविष्कारों के कारण तेजी से बदलते समाज में ऐसी धारणा महत्वहीन होती है
  4. समितियों ,आयोगों और स्वतंत्र संगठनों में इस धारणा की कोई प्रासंगिकता नहीं है।
  5. विशेषज्ञों और इनकी एजेंसियों की संख्या, शक्ति और प्रभाव बढ़ता जा रहा है यह एजेंसीयां कार्यपालक एजेंसियों के कर्मचारियों को प्रशासनिक तकनीकी, कानूनी और अन्य अनेक प्रकार के आदेश सीधे देने लगी है।
  6. व्यावहारिक क्षेत्र में इस सिद्धांत को करने में काफी कठिनाई आती है।
  7. समादेश देने और पालन करने वालों की दुनिया के बाहर भी अनेक संबंध होते हैं।

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सिद्धांत के लाभ

  1. सिद्धांत से प्रशासन में कार्यकुशलता आती है।
  2. काम पदसोपान के अनुरूप होता है।
  3. इसमें कर्मचारियों को आज्ञा पालन करने के संबंध में कोई भ्रांति नहीं होती है।
  4. कर्मचारियों को यह पता होता है कि उन्हें किससे आदेश प्राप्त करने हैं और वह किसके प्रति उत्तरदायी है।

सार रूप

  1. विशेषीकरण सिद्धांत का विरोधी है।
  2. कार्यात्मक फोरमैनशिप का विरोधी है
  3. यह सिद्धांत बहुल निकायों जैसे परिषदों में प्रभावित होता है।
  4. यह सिद्धांत समाप्त होने पर एक कर्मचारी बहुत से आदेश अनेक उच्च अधिकारियों से प्राप्त करेगा।

Specially thanks to – P K Nagauri

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