मौलिक अवधारणाए प्रस्थिति तथा भूमिका प्रश्नोत्तरी | सामाजशास्त्र UNIT 2

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मौलिक अवधारणाए प्रस्थिति तथा भूमिका प्रश्नोत्तरी | सामाजशास्त्र UNIT 2

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1. एक साथ कई भूमिकाओं में रुचि लेना और भाग लेना कहलाता है

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2. प्रदत्त प्रस्थिति

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3. प्रदत्त व अर्जित प्रस्थिति का विभाजन किसने किया ?

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4. ऑफिस, स्टेशन, स्तर की अवधारणा प्रतिपादित की ?

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5. संस्थागत व्यवस्था में समाज द्वारा प्रदत्त पद प्रस्थिति है जिसकी उत्पत्ति स्वतः होती है तथा जिससे रितियां व रूढ़ियां जुड़े रहते हैं ?

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6. भारतीय संदर्भ में जाति उदाहरण है ?

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7. एक व्यक्ति को प्राप्त सभी पदों से जुड़ी हुई सभी भूमिकाओं का योग कहलाता है

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8. डेविस के अनुसार व्यक्ति की अनेक प्रस्थिति का संग्रह कहलाता है

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9. समाजों के वर्गीकरण में पवित्र समाज का प्रयोग किसने किया?

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10. सोशल डिफरेशिएशन पुस्तक के लेखक हैं - ?

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11. र्धुर्वीय परिस्थिति के जनक हैं

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12. परिस्थिति से जुड़ा मूल्य जिसे पाने के लिए विशेष योग्यता की जरूरत होती है कहलाता है ?

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13. - प्रस्थिति अनियमितता के जनक हैं

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14. प्रस्थिति एवं भूमिका का अवधारणात्मक स्तर पर सर्वप्रथम उल्लेख किया है ?

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15. समाज एक वस्तु नहीं बल्कि संबंध स्थापित करने की एक प्रक्रिया है?

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16. आयु के आधार पर प्रस्थिति का निर्धारण जैविक की बजाय सांस्कृतिक अधिक है कथन किसका है ?

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17. मुख्य प्रस्थिति की अवधारणा प्रतिपादित की ?

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18. किसने सामाजिक पद को अधिकार व दायित्व में विभाजित किया है ?

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19. भर्ती भूमिकाओं की अवधारणा का प्रयोग किया?

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20. भूमिका निर्वाह के प्रतिपादक हैं

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21. किसी व्यक्ति की सगाई होने व शादी होने तक की बीच की स्थिति को कहते हैं

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22. सामाजिक व्यवस्था में किसी व्यक्ति को प्राप्त पद प्रस्थिति है जिसका संबंध समय व स्थान से है यह परिभाषा दी ?

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23. किसने व्यक्ति को सामाजिक इकाई मानते हुए प्रस्थिती व भूमिकाओं का मिश्रित बंडल माना है ?

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24. ऑफिस, स्टेशन, स्तर की अवधारणा प्रतिपादित की ?

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25. समाज में व्यक्ति को प्राप्त पद है?

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26. द्वितीयक समूह विशेषीकृत होते हैं?

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27. उत्तर औद्योगिक समाज की अवधारणा प्रस्तुत की?

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28. जिन व्यक्तियों से नातेदारी की बाध्यता है यह आशा करती है कि इन्हें बराबरी का व्यवहार करना चाहिए वास्तव में ऐसे व्यक्तियों की अन्य क्षेत्रों में अत्यंत असंगत परिस्थितियां होती है उसे कहते हैं

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29. किसी विशिष्ट भूमिका के संबंध में समाज द्वारा अपेक्षित एवं इच्छित व्यवहारो अथवा प्रत्यूतरों के संपूर्ण पुंज को कहते हैं

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30. समाज के द्वारा मान्य भूमिका को कहते हैं

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